Skip to main content

today news प्रेरित युवा ही राष्ट्र की शक्ति है, हमें प्रेरणा और प्रयत्नों काे सहेजने पर ध्यान देना होगाः टाटा

नए साल पर टाटा ग्रुप के चेयरमैन एमेरिटस रतन टाटा ने भास्कर के पाठकों के लिए विशेष संदेश दिया है। दैनिक भास्कर के रितेश शुक्ल से एक घंटे से भी ज्यादा लंबी बातचीत में उन्होंने 2021 की उम्मीदों, हमारी ताकत और चिंताओं पर अपने विचार रखे। इस बातचीत का सार एक आर्टिकल के रूप पेश है...

नए वर्ष में दूसरों के विचारों के प्रति समझ और सहिष्णुता हमारी ताकत

कोविड काल की शुरुआत में ऐसा लगा कि ईश्वर ने आराम का अवसर दिया है लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया स्थितियां बदलती गईं। हमें अपने काम से मिलने वाली संतुष्टि का स्तर हर दिन घटता गया क्योंकि हफ्ते के सारे दिन और सारे हफ्ते एक जैसे दिखने लगे। रविवार और सोमवार का फर्क कर पाना मुश्किल हो गया। हर रात को नींद आने से पहले बीते दिन के बारे में सोचो तो यही लगता कि हम जितना कर सकते थे, उतना नहीं कर पाए।

यह स्थिति कब बदलेगी

सच पूछिए तो इस प्रश्न का उत्तर मेरे पास नहीं है। अगर कोई कहता है कि वह उत्तर जानता है तो वह संभवत: सच नहीं बोल रहा है। साल बदल रहा है और अगर आप मुझसे पूछें तो मैं नए साल में खुद के लिए दूसरों के विचार समझने की बेहतर बुद्धि ईश्वर से मांगूंगा। दूसरों के दृष्टिकोण समझना और उनके प्रति सहिष्णुता ही हमारी ताकत है।

महामारी ऐसी ताकत है जिसका सम्मान करते हुए सामना करना होगा

मुझे लगता है कि दुनिया में अलग-अलग चक्र चलते रहते हैं। बिजनेस का चक्र, स्वास्थ्य का चक्र...महामारी का चक्र। समय-समय पर कोई चक्र ऊपर उठता है तो लगता है कि वह दूसरे सभी चक्रों पर हावी हो गया है, मगर यह हमेशा नहीं रहता। एक समय था जब लग रहा था कि एचआईवी मानव जाति को लील जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मुझे लगता है कि कोविड के प्रश्न का भी हम ऐसा कोई उत्तर ढूंढ पाएंगे जो कम से कम इस वायरस की मारक क्षमता को बहुत हद तक कम कर देगा। संभव है आप विपरीत तर्क दें और आप सही भी हो सकते हैं। आखिर यूके और यूरोप में लोगों ने कोविड के असर को नकार दिया था लेकिन आज वहां लॉकडाउन दोबारा लागू है। मैं न तो बहुत आशावादी या निराशावादी प्रतीत होना चाहूंगा। मै सतर्क रहना चाहूंगा ताकि साफ-सफाई रहे, मास्क का उपयोग होता रहे। हमें विनम्र होने की आवश्यकता है ताकि हम एहसास कर सकें कि यह वायरस बहुत ताकतवर है। इसका मतलब यह नहीं है कि हम अंधविश्वासी हो जाएं। मैं सिर्फ इतना ही कहूंगा कि हमें इस परिस्थिति का आदर करते हुए सामना करने की जरूरत है।

प्रेरित युवा ही राष्ट्र की शक्ति

हमें कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उठाने कि जरूरत है। आखिर क्यों आज दुनिया कि टॉप कंपनियों का नेतृत्व भारतवंशी कर रहे हैं। दूसरा सवाल यह कि इन चुनिंदा लोगों के बाद हमें भारतवंशियों की संख्या ज्यादा क्यों नहीं दिखती? जबकि टॉप तक पहुंचे कई लोगों ने उसी संस्थान में निचले स्तर से काम शुरू किया था। वजह शायद यह है कि शीर्ष पर अवसर कम हैं। वहीं क्या वजह है कि इतनी बड़ी तादाद में भारत के लोग रोजगार पाने में भी असमर्थ हो रहे हैं? इतिहास गवाह है कि जो लोग नए समय में उत्पन्न हुई आवश्यकताओं को पूरा करने कि कोशिश करते हैं वे आगे बढ़ जाते हैं। ऐसे में हमें इस बात पर गौर करने कि आवश्यकता है कि क्या हमारे पास ऐसी व्यवस्था और वातावरण है जो रचनात्मकता को बढ़ावा दे सके? क्या युवाओं के लिए ऐसा माहौल है जिसमें अगर वो नवाचार के बारे में सोच सकते हों तो उन्हें क्रियान्वयन का भी साहस और सहयोग प्राप्त हो सके? आखिरकार जब यह महसूस होने लगा कि प्रदूषण समस्या है तब बैटरी से चलने वाले वाहनों की कल्पना हुई और आज साकार हो पा रही है। सफलता-असफलता से आगे जा कर जब तक रचना शैली, प्रयत्नशीलता और जुझारूपन को तवज्जो नहीं मिलेगी तब तक युवा नवाचार की राह पर कैसे चल पाएगा? मुझे लगता है कि प्रेरित युवा ही राष्ट्र की सबसे बड़ी शक्ति है। प्रेरणा और प्रयत्न को संरक्षित करना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए बाकी सब ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए।

कौशल से दूर होगी बेरोजगारी

आम तौर पर यह माना जाता है कि जॉब मार्केट में अनस्किल्ड, सेमीस्किल्ड और हाईली स्किल्ड लोग हैं। लेकिन ऑटोमेशन की वजह से एक ऐसा क्षेत्र उभरा है जिसके लिए उपयोगी कौशल, किसी डिग्री या डिप्लोमा पर निर्भरता नहीं है। मेरा मानना है कि वो जिन्हें हम प्रवासी मजदूर कहते हैं उनके पास भी विशिष्ट किस्म का कौशल है, लेकिन वे ऐसे दूषित वातावरण में हैं कि उनका श्रम सुरक्षित नहीं है। दूसरे विश्वयुद्ध में अमेरिका जब शामिल हुआ तब सैन्य उपकरण उद्योग को वहां की गृहिणियों ने संभाला। 1970 के दशक में जब तकनीक का चरम इलेक्ट्रॉनिक सर्किट हुआ करता था, तब चीन की महिलाओं ने माइक्रोस्कोप में देखते हुए तेजी से सर्किट जोड़े और तब तक जोड़ती रहीं जबतक वही काम रोबोट ने 10 गुना तेजी से करना शुरू नहीं कर दिया। पूछने योग्य प्रश्न यह है कि असल में बेरोजगारी है कहां? जहां कौशल को अवसर नहीं मिलता वहीं बेरोजगारी होती है। हमें ऐसा नेतृत्व चाहिए जो यह संकल्प लेकर मैदान में उतरे कि काम की आवश्यकता अनुसार लोगों के कुछ हिस्सों को प्रशिक्षित किया जा सके। आज सरकार कौशल विकास की दिशा में बेहद गंभीर है लेकिन बड़ा प्रश्न यह भी है कि कौशल प्राप्त करने बाद लोग देश में रहेंगे या मध्य एशिया या धरती के अन्य हिस्सों में जा बसेंगे? आखिर नर्सिंग और मेडिकल लैबोरेटरी टेक्नीशियन के क्षेत्र में यही तो हो रहा है। हमें असफलताओं में भी निवेश करने की हिम्मत रखनी होगी।

अगर कुछ चुनिंदा लोग ही हों जिनसे हम महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर मांगें तो हम बहुत कुछ हासिल नहीं कर पाएंगे। एक समय था जब टाटा या बिड़ला या अन्य ऐसे बड़े औद्योगिक घराने थे जिनकी कार्यप्रणाली का अनुसरण करना बेहद मुश्किल था। आज ऐसे लोगों के उदाहरण बहुतायत में उपलब्ध हैं जिनके पास एक आइडिया था जिसे जमीन पर उतारकर उन्होंने संपन्नता हासिल की। उदाहरण के तौर पर मैं एक स्टार्टअप के साथ काम कर रहा हूं। मुझे बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। लेकिन क्या मैं अपने अर्जित ज्ञान को कैटेलॉग कर पा रहा हूं? नहीं, मैं नहीं कर पा रहा हूं। जब हम ऐसा नहीं कर पाते हैं तो अपनी असफलताओं से सीखने का अवसर खो देते हैं। अपनी असफलताओं को हमें सफलता के मार्ग में मील के पत्थरों के रूप में देखना होगा। भारत में एक ऐसा माहौल बनाना होगा जहां किसी नवाचार को यह जानते हुए भी लागू किया जा सके कि यह असफल हो सकता है। इन्हीं असफलताओं से मिला ज्ञान हमें सफलता तक पहुंचाएगा।

टेक्नोलॉजी को क्लाइमेट चेंज पर भी सोचना होगा

मुझे बड़ी प्रसन्नता है कि आज हम क्लाइमेट चेंज को गंभीरता से ले रहे हैं। कुछ दशकों पहले लोगों के लिए यह सोचना भी अजीब था कि समय और पैसे खर्च किए जाएं ताकि हमें साफ-सुथरा नीला आकाश देखने को मिल सके। सांस लेने के लिए प्रदूषण रहित वायु उपलब्ध हो। हम अपनी अगली पीढ़ी को क्या देने जा रहे हैं, इस बात को नजरअंदाज कर रहे थे। आज भी कुछ लोग कह सकते हैं कि हमें जलवायु पर ध्यान देने से ज्यादा भोजन की उपलब्धता पर समय और पैसा खर्च करने की जरूरत है। लेकिन अब देर करना घातक साबित हो सकता है। कुछ जगहों पर तो पहले से ही देर हो चुकी है। मुझे लगता है कि जब भी हमें अपनी जेब में हाथ डालना पड़ता है उस खर्च के लिए जिसका तात्कालिक लाभ न हो तो उस खर्च का विरोध स्वाभाविक है। लेकिन आज हम ग्लेशियर के पिघलने, मछलियों के लुप्त हो जाने और प्रदूषित हो रहे जल, भोजन और वायु को नजरअंदाज नहीं कर सकते। हमेशा कुछ लोग ऐसे होंगे जो कहेंगे कि हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन हम मानें या ना मानें फर्क तो पड़ेगा ही। टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल अगर इस समस्या को सुलझाने में नहीं किया गया तो टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने वाले ही नहीं बचेंगे।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
नए साल पर टाटा ग्रुप के चेयरमैन एमेरिटस रतन टाटा ने भास्कर के पाठकों के लिए विशेष संदेश दिया है।


from Dainik Bhaskar /national/news/ratan-tata-exclusive-interview-interview-update-speaks-on-elon-musk-spacex-covid-lockdown-apple-steve-jobs-128072183.html
via

Comments

Popular posts from this blog

today news कर्मचारियों के DA कटौती का आदेश वापस ले रही है मोदी सरकार? जानिए वायरल मैसेज की सच्चाई

क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर दावा किया जा रहा है कि केंद्र सरकार ने कर्मचारियों के DA की कटौती का आदेश वापस ले लिया है। दावे के साथ एक आदेश की कॉपी भी वायरल हो रही है। ये आदेश 21 सितंबर का बताया जा रहा है। दरअसल, कोविड-19 लॉकडाउन के चलते हुई आर्थिक सुस्ती को देखते हुए मोदी सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों के महंगाई भत्ते की तीन अतिरिक्त किश्तों पर रोक लगाने का फैसला लिया था। केंद्र सरकार के इस फैसले का असर 50 लाख कर्मचारियों और 61 लाख पेंशनभोगियों पर पड़ा है। अब दावा किया जा रहा है कि ये आदेश वापस ले लिया गया है। और सच क्या है? इंटरनेट पर हमें ऐसी कोई खबर नहीं मिली, जिससे पुष्टि होती हो कि केंद्र सरकार ने DA कटौती का आदेश वापस ले लिया है। वायरल हो रही चिट्‌ठी को पढ़ने से स्पष्ट होता है कि ये DA कटौती वापस लेने का आदेश नहीं है। बल्कि, केंद्र सरकार में जनरल सेक्रेटरी डॉ. एम रघवैय्या द्वारा लिखा गया एक आवेदन पत्र है, जो कि वित्त मंत्री को लिखा गया है। इस पत्र में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से अनुरोध किया गया है कि वे केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनर्स को डियरनेस अल

A penguin named Pingu somehow made it from Antarctica to New Zealand: An 1,800-mile journey - USA TODAY

A penguin named Pingu somehow made it from Antarctica to New Zealand: An 1,800-mile journey    USA TODAY Antarctic Penguin Travels 2,000 Miles to New Zealand by Mistake    The Daily Beast Antarctic penguin waddles ashore in New Zealand, 2,000 miles from home    NBC News A rare penguin washes up on a New Zealand beach | TheHill    The Hill Lost penguin swims from Antarctica to New Zealand    USA TODAY View Full Coverage on Google News from Top stories - Google News https://ift.tt/3c8uJ9E via

today news बिहार चुनाव में बसपा का बटन दबाने पर भी ईवीएम से बीजेपी को वोट जा रहा? जानें सच

सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। वीडियो में देखा जा सकता है कि ईवीएम मशीन में बहुजन समाज पार्टी ( बसपा) के चुनाव चिन्ह हाथी का बटन दबाने पर भी भाजपा के चुनाव चिन्ह के सामने वाली लाइट जल रही है। सोशल मीडिया पर वीडियो बिहार चुनाव का बताया जा रहा है। इसके आधार पर भाजपा पर ईवीएम टेम्परिंग का आरोप लग रहा है। बिहार का चुनाव Jas चैनल की खबर है !! पहले ही चरण की वोटिंग में खेल सुरु हो गया है बीजेपी वोट #डाला_हाथी_पे जाता #कमल पे @ECISVEEP क्या इस पर कोई कार्यवाही होगी pic.twitter.com/zVgJEelgKr — Sajid Ali INC (@sajidalimarwadi) October 31, 2020 और सच क्या है? पड़ताल की शुरुआत में हमने अलग-अलग की-वर्ड के जरिए बिहार चुनाव में ईवीएम की गड़बड़ी से जुड़ी खबरें इंटरनेट पर तलाशनी शुरू कीं। दैनिक भास्कर की खबर के अनुसार, बिहार की मुंगेर विधानसभा में एक बूथ पर राजद के चुनाव चिन्ह के सामने वोटिंग बटन न होने का मामला सामने आया था। हालांकि, किसी भी मीडिया रिपोर्ट में हमें ऐसा मामला नहीं मिला, जिसमें बसपा का बटन दबाने पर बीजेपी को वोट पड़ने की शिकायत हुई हो। वायरल वीडियो के स्क्